सेबी का बड़ा कदम: नामिनी से कानूनी वारिसों को शेयर ट्रांसफर अब होगा आसान और टैक्स-फ्री

SEBI's big move: Transfer of shares from nominee to legal heirs will now be easy and tax-free

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नई दिल्ली — शेयर बाजार के निवेशकों और उनके परिवारों के लिए एक अहम खबर आई है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने ऐसा प्रस्ताव रखा है, जिससे नामिनी (Nominee) से कानूनी वारिसों (Legal Heirs) को शेयर या अन्य प्रतिभूतियों का ट्रांसफर करना पहले से कहीं ज्यादा आसान और टैक्स से जुड़ी परेशानियों से मुक्त हो जाएगा।

SEBI ने एक मानक कारण कोड (Standard Reason Code) लाने का सुझाव दिया है, जिसे नाम दिया गया है — ‘TLH’ यानी Transmission to Legal Heirs। इस कोड के जरिए रजिस्ट्रार, डिपॉज़िटरी और अन्य रिपोर्टिंग संस्थाएं आयकर विभाग (CBDT) को सही तरीके से जानकारी भेज सकेंगी।


समस्या क्या थी?

अभी मौजूदा सिस्टम में कई बार जब किसी निवेशक के निधन के बाद उसके शेयर या सिक्योरिटीज़ नामिनी से असली कानूनी वारिसों को ट्रांसफर होते हैं, तो रिकॉर्ड में इन ट्रांज़ैक्शन्स को सामान्य बिक्री (Sale) मान लिया जाता है।

इस वजह से:

  • नामिनी पर कैपिटल गेन टैक्स लग सकता है, जबकि उसने कुछ बेचा ही नहीं।

  • टैक्स विभाग के रिकॉर्ड में यह लेनदेन ‘बिक्री’ के रूप में दिख जाता है।

  • असल वारिसों को भी टैक्स संबंधी अतिरिक्त प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

SEBI का कहना है कि यह गलती सिर्फ रिपोर्टिंग की असमानता और मानकीकरण की कमी से होती है।


‘TLH’ कोड कैसे करेगा मदद?

नया ‘TLH’ (Transmission to Legal Heirs) कोड इन लेनदेन को एक अलग श्रेणी में रखेगा।

  • इससे यह साफ हो जाएगा कि यह कोई बिक्री नहीं, बल्कि विरासत के तहत ट्रांसफर है।

  • आयकर विभाग को पता रहेगा कि यह लेनदेन टैक्स-फ्री है।

  • रिपोर्टिंग एक जैसी और पारदर्शी होगी।


नामिनी की भूमिका क्या है?

SEBI ने अपने दस्तावेज़ में साफ किया है कि नामिनी केवल एक ट्रस्टी (Trustee) की तरह होता है।

  • नामिनी के पास शेयर या सिक्योरिटीज़ का असली मालिकाना हक़ नहीं होता।

  • वह सिर्फ मूल धारक (Original Holder) के निधन के बाद अस्थायी तौर पर इन एसेट्स को संभालता है।

  • आखिरकार, ये एसेट्स असली कानूनी वारिसों के पास ही जाते हैं।

आयकर कानून, 1961 की धारा 47(iii) में भी साफ है कि ऐसे ट्रांसफर को ‘ट्रांसफर’ की परिभाषा में नहीं गिना जाता, इसलिए इन पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता।


क्यों आया यह प्रस्ताव?

यह कदम एक वर्किंग ग्रुप की सिफारिशों के बाद उठाया गया है। इस ग्रुप में रजिस्ट्रार टू इश्यू और शेयर ट्रांसफर एजेंट्स (RTAs) के प्रतिनिधि शामिल थे, जिन्होंने कई बैंकों, डिपॉज़िटरी और अन्य हितधारकों से चर्चा की।

ग्रुप की राय थी कि रिपोर्टिंग सिस्टम में एक जैसा कोड न होने से ग़लतफहमियां होती हैं और टैक्स का बेवजह बोझ पड़ जाता है।


प्रक्रिया वही रहेगी, रिपोर्टिंग बदलेगी

SEBI ने साफ किया है कि यह नया कोड सिर्फ रिपोर्टिंग में बदलाव लाएगा।

  • सिक्योरिटीज़ के ट्रांसफर से जुड़े नियम वही रहेंगे जो SEBI (Listing Obligations and Disclosure Requirements) Regulations, 2015 में हैं।

  • साथ ही, RTA मास्टर सर्कुलर (23 जून 2025) के दिशा-निर्देश भी लागू रहेंगे।


अगले कदम क्या होंगे?

  • SEBI ने इस प्रस्ताव पर 2 सितंबर 2025 तक जनता से राय मांगी है।

  • अगर इसे मंजूरी मिलती है, तो सभी RTA, सूचीबद्ध कंपनियां, डिपॉज़िटरी और डिपॉज़िटरी पार्टिसिपेंट्स के पास 3 महीने का समय होगा अपने सिस्टम में बदलाव करने के लिए।

  • इन बदलावों के बाद, हर बार जब नामिनी से कानूनी वारिस को शेयर ट्रांसफर होगा, तो रिपोर्ट में ‘TLH’ कोड दर्ज किया जाएगा।


निवेशकों और परिवारों को होने वाले फायदे

  1. टैक्स से राहत — अब नामिनी को ऐसे ट्रांसफर पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं देना पड़ेगा।

  2. स्पष्ट रिकॉर्ड — लेनदेन के बारे में कोई भ्रम नहीं रहेगा।

  3. तेज़ और आसान प्रक्रिया — रिपोर्टिंग मानकीकृत होने से प्रक्रिया सरल हो जाएगी।

  4. कानूनी सुरक्षा — असली वारिसों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे।


विशेषज्ञों की राय

मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह कदम लंबे समय से ज़रूरी था। शेयरों और सिक्योरिटीज़ के ट्रांसफर में पारदर्शिता आने से न केवल परिवारों की मुश्किलें कम होंगी, बल्कि वित्तीय संस्थानों का काम भी आसान होगा।


निष्कर्ष

SEBI का ‘TLH’ कोड प्रस्ताव निवेशकों के परिवारों के लिए राहत की खबर है। यह न केवल टैक्स के झंझट को खत्म करेगा, बल्कि पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और एक जैसा बना देगा। अब देखना होगा कि जनता से मिले सुझावों के बाद यह नियम कब लागू होता है।


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By MFNews