सेबी ने बड़े कॉरपोरेट्स के लिए आसान किए आईपीओ नियम, छोटे इश्यू साइज के साथ करें लिस्टिंग

SEBI relaxes IPO norms for big corporates, now listing will come with smaller issue size

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मुंबई Mumbai:  भारतीय  प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शुक्रवार, 12 सितंबर 2025 को अपने बोर्ड मीटिंग में कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने की प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण सुधारों को मंजूरी दी। इन सुधारों में सबसे अहम फैसला बड़े कॉरपोरेट्स के लिए है, जिनके लिए अब आईपीओ (IPO) में न्यूनतम इश्यू साइज घटा दिया गया है।

5% से घटकर 2.5% न्यूनतम ऑफर

सेबी ने स्पष्ट किया कि जिन कंपनियों का पोस्ट-लिस्टिंग मार्केट कैपिटलाइजेशन ₹5 लाख करोड़ से अधिक होगा, वे अब अपने आईपीओ में केवल 2.5% पेड-अप शेयर कैपिटल ही बेचकर लिस्ट हो सकती हैं। इससे पहले यह सीमा 5% थी।

सेबी ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि बाजार इतनी बड़ी इश्यू साइज को आसानी से अवशोषित कर सके और कंपनियों को लिस्टिंग की राह आसान हो।

नई कैटेगरी और थ्रेशोल्ड

सेबी चेयरमैन तुहिनकांत पांडे ने मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि अब मौजूदा ₹4,000 करोड़ स्तर के अलावा चार नई कैटेगरी बनाई गई हैं:

  • ₹4,000 करोड़ से ₹50,000 करोड़

  • ₹50,000 करोड़ से ₹1 लाख करोड़

  • ₹1 लाख करोड़ से ₹5 लाख करोड़

  • ₹5 लाख करोड़ से अधिक

इन नई कैटेगरीज के लिए स्केल-आधारित थ्रेशोल्ड तय किए गए हैं। उदाहरण के लिए, ₹5,500 करोड़ से ₹1 लाख करोड़ तक की कंपनियों को अब 10% की बजाय ₹1,000 करोड़ + कम से कम 8% पब्लिक ऑफर करना होगा।

₹1 लाख करोड़ से ऊपर के लिए नियम

सेबी के अनुसार, जिन कंपनियों का पोस्ट-इश्यू मार्केट कैप ₹1 लाख करोड़ से अधिक है, उनके लिए न्यूनतम पब्लिक ऑफर (MPO) ₹6,250 करोड़ + कम से कम 2.75% रहेगा। वहीं, जिनका मार्केट कैप ₹5 लाख करोड़ से अधिक है, उनके लिए यह सीमा ₹15,000 करोड़ + कम से कम 1% होगी।

पब्लिक शेयरहोल्डिंग बढ़ाने की समयसीमा बढ़ी

सेबी ने कंपनियों को न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग (MPS) 25% तक पहुंचाने की समयसीमा भी बढ़ा दी है।

  • जिन कंपनियों का मार्केट कैप ₹50,000 करोड़ से ₹1 लाख करोड़ तक है, उन्हें अब 5 साल में यह लक्ष्य हासिल करना होगा, जबकि पहले समयसीमा 3 साल थी।

  • वहीं, जिनका मार्केट कैप ₹1 लाख करोड़ से अधिक है, उन्हें 10 साल तक की छूट मिलेगी।

विदेशी निवेशकों के लिए राहत

सेबी ने विदेशी निवेशकों की भागीदारी आसान बनाने के लिए भी कदम उठाए। अब लो-रिस्क विदेशी निवेशकों को भारतीय सिक्योरिटीज मार्केट में प्रवेश करने के लिए सिंगल विंडो एक्सेस मिलेगा। इससे अनुपालन सरल होगा और भारत निवेश गंतव्य के रूप में और आकर्षक बनेगा।

एंकर निवेशकों के लिए नया फ्रेमवर्क

आईपीओ को वैश्विक फंड्स के लिए और आकर्षक बनाने हेतु सेबी ने एंकर निवेशकों (Anchor Investors) के लिए शेयर आवंटन फ्रेमवर्क में बदलाव किया है। इससे संस्थागत निवेशकों की भागीदारी और व्यापक होगी।

स्टॉक एक्सचेंजों के लिए गवर्नेंस सुधार

सेबी ने मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (MIIs), जैसे स्टॉक एक्सचेंज और डिपॉजिटरीज के गवर्नेंस फ्रेमवर्क को भी सख्त किया है। अब इन्हें कम से कम दो एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स (EDs) की नियुक्ति करनी होगी ताकि ऑपरेशनल ओवरसाइट और मजबूत हो सके।

अन्य प्रमुख फैसले

  • REITs और InvITs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जाएगा।

  • REIT और InvIT नियमों में “स्ट्रैटेजिक इन्वेस्टर” की परिभाषा को QIBs (Qualified Institutional Buyers) तक विस्तारित किया जाएगा।

  • AIFs (Alternative Investment Funds) के लिए हल्का नियामकीय ढांचा तैयार किया गया है, जिसमें केवल मान्यता प्राप्त निवेशकों (Accredited Investors) को अनुमति होगी।

  • संबंधित संस्थाओं (Related Parties) के बीच लो-वैल्यू ट्रांजैक्शंस के लिए डिस्क्लोजर आवश्यकताओं को सरल किया गया है।

क्यों अहम है यह कदम?

बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, सेबी का यह फैसला भारतीय बाजार को और लिक्विड, आकर्षक और प्रतिस्पर्धी बनाएगा। बहुत बड़े कॉरपोरेट्स के लिए, जो वैश्विक स्तर पर भी दिग्गज हैं, छोटी इश्यू साइज की अनुमति मिलने से वे निवेशकों पर दबाव डाले बिना पूंजी जुटा पाएंगे।

वहीं, लंबी समयसीमा देने से कंपनियों को पब्लिक शेयरहोल्डिंग धीरे-धीरे बढ़ाने का मौका मिलेगा, जिससे बाजार पर अचानक शेयर की बाढ़ नहीं आएगी और स्थिरता बनी रहेगी।


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By MFNews