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चंडीगढ़: भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। निवेशक अब बाजार में सक्रिय (Active) रूप से फंड मैनेजर्स के प्रदर्शन पर निर्भर रहने के बजाय, पैसिव निवेश (Passive Investing) की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
फ्रैंकलिन टेम्पलटन इंडिया म्युचुअल फंड के आंकड़ों के अनुसार, पैसिव फंडों के तहत प्रबंधन के अधीन कुल संपत्ति (AUM) अगस्त 2025 में ₹12.19 लाख करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई है। यह एक साल पहले के ₹10.96 लाख करोड़ की तुलना में 11% की शानदार वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।
हालांकि, सबसे प्रभावशाली आंकड़ा निवेशकों की भागीदारी से संबंधित है। पिछले पाँच वर्षों में, पैसिव फंडों के खाते या फॉलियो (Folios) में 17 गुना की असाधारण वृद्धि हुई है। यह वृद्धि स्पष्ट रूप से दिखाती है कि सरल, कम लागत वाले निवेश विकल्प अब भारतीय निवेशकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
बाज़ार की बदलती तस्वीर: पैसिव निवेश क्यों बढ़ रहा?
पैसिव निवेश मुख्य रूप से इंडेक्स फंड (Index Funds) और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETFs) के माध्यम से होता है। ये फंड किसी खास बाजार सूचकांक (जैसे निफ्टी 50 या सेंसेक्स) को हूबहू ट्रैक करते हैं। यानी, इनका लक्ष्य बाजार को हराना नहीं, बल्कि बाजार के समान प्रदर्शन करना होता है।
इस प्रवृत्ति के पीछे कई मजबूत कारण हैं:
- कम लागत (Lower Cost): पैसिव फंडों में फंड मैनेजर की सक्रिय भूमिका कम होती है, इसलिए इनकी प्रबंधन लागत (Expense Ratio) सक्रिय फंडों की तुलना में काफी कम होती है, जिससे निवेशकों का शुद्ध रिटर्न बढ़ जाता है।
- सरलता और पारदर्शिता (Simplicity and Transparency): नए निवेशकों के लिए, निष्क्रिय फंड समझना बहुत आसान है। उन्हें सिर्फ यह जानना होता है कि वे किस सूचकांक (Index) में निवेश कर रहे हैं, न कि किस फंड मैनेजर पर भरोसा कर रहे हैं।
- बाजार की परिपक्वता (Market Maturity): वैश्विक बाजारों की तरह, भारतीय निवेशक भी अब यह समझने लगे हैं कि लंबी अवधि में, अधिकांश सक्रिय फंडों के लिए बाजार सूचकांक को लगातार मात देना मुश्किल होता है।
अगस्त 2021 में, कुल उद्योग AUM में पैसिव फंडों की हिस्सेदारी केवल 11% थी, जो अब बढ़कर 16% हो गई है, जो इस संरचनात्मक बदलाव को मजबूती से प्रमाणित करती है।
इक्विटी में अटूट विश्वास और नए निवेशकों का सैलाब
पैसिव फंडों के बढ़ते आकर्षण के साथ-साथ, इक्विटी बाजार में निवेशकों का विश्वास भी अटूट बना हुआ है। इक्विटी-ओरिएंटेड योजनाओं में लगातार 54वें महीने भी शुद्ध सकारात्मक बिक्री दर्ज की गई, जिसमें अकेले अगस्त 2025 में ₹42,665 करोड़ का बड़ा निवेश आया।
भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग ने हाल ही में एक और मील का पत्थर पार किया है। अगस्त में कुल निवेशकों की संख्या बढ़कर 5.64 करोड़ हो गई, जिसमें एक ही महीने में लगभग 4.9 लाख नए निवेशक जुड़े। पिछले एक साल में, उद्योग ने 73 लाख नए निवेशकों को जोड़ा है। यह दर्शाता है कि बचत को निवेश में बदलने की प्रक्रिया भारत में अब एक व्यापक जन-आंदोलन बन चुकी है।
SIP की बढ़ती शक्ति: अनुशासन का नया शिखर
खुदरा निवेशकों की भागीदारी का मेरुदंड (backbone) माने जाने वाले सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIPs) की गति लगातार तेज हो रही है। SIP, जो छोटे और अनुशासित मासिक निवेश को प्रोत्साहित करता है, अब भारतीय वित्तीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गया है।
SIP के माध्यम से मासिक प्रवाह लगातार बढ़ रहा है:
- मासिक SIP प्रवाह: यह आँकड़ा ₹28,265 करोड़ तक पहुँच गया है, जो मात्र तीन वर्षों से भी कम समय में लगभग दोगुना हो गया है। यह राशि दर्शाती है कि हर महीने लाखों भारतीय अपनी भविष्य की वित्तीय सुरक्षा के लिए एक अनुशासित राशि अलग रख रहे हैं।
- औसत SIP टिकट साइज़: दिसंबर 2024 में जो औसत टिकट साइज़ ₹2,564 था, वह अगस्त 2025 तक बढ़कर ₹2,947 हो गया है। टिकट साइज़ में यह वृद्धि बताती है कि भारतीय मध्य वर्ग की आय बढ़ रही है और वे अब निवेश के लिए पहले से अधिक धन आवंटित करने में सक्षम हैं।
SIP की यह सफलता भारत की आर्थिक स्थिरता और निवेशकों के दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर भरोसा रखने का प्रमाण है।
बाज़ार का घरेलू शक्ति पर बढ़ता भरोसा (DIIs बनाम FPIs)
भारतीय शेयर बाजार अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के आउटफ्लो के प्रति कम संवेदनशील होता जा रहा है। इसका कारण है घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) का मजबूत होना।
पिछले 12 महीनों (अगस्त 2025 तक) में, DIIs (जिनमें मुख्य रूप से म्युचुअल फंड शामिल हैं) से ₹7.3 लाख करोड़ का शुद्ध अंतर्वाह (inflows) हुआ। इसकी तुलना में, इसी अवधि में FPIs से ₹3.8 लाख करोड़ का शुद्ध बहिर्वाह देखा गया।
यह रुझान भारतीय बाजार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है:
- बाजार की स्थिरता (Market Stability): घरेलू पूंजी की मजबूती बाजार को वैश्विक अनिश्चितताओं या FPIs द्वारा अचानक की गई बिकवाली के झटकों से बचाती है।
- आत्मनिर्भरता (Self-Reliance): यह दर्शाता है कि भारतीय बचतकर्ता अब स्वयं देश की विकास गाथा में सबसे बड़े निवेशक बन चुके हैं, जिससे देश की पूंजी बाजार की निर्भरता विदेशी स्रोतों पर कम हो गई है।
कहा जा सकता है कि पैसिव फंडों के माध्यम से निवेश की सादगी हो, SIP के जरिए अनुशासन हो, या घरेलू पूंजी की बढ़ती ताकत हो—भारतीय म्युचुअल फंड उद्योग एक महत्वपूर्ण बदलाव काल से गुजर रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न की संभावनाएँ खोलती है, बल्कि पूरे भारतीय वित्तीय बाजार के लिए एक मजबूत और आत्मनिर्भर भविष्य का निर्माण भी करती है।
