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नई दिल्ली: म्यूचुअल फंड की दुनिया में, फ्लेक्सी-कैप फंड को अक्सर ‘हर मौसम का साथी’ कहा जाता है। ये फंड निवेशकों को बाज़ार के हर साइकल में ग्रोथ देने का वादा करते हैं, क्योंकि फंड मैनेजर्स को लार्ज-कैप, मिड-कैप और स्मॉल-कैप—तीनों सेगमेंट में अपनी ज़रूरत के हिसाब से निवेश की पूरी आज़ादी होती है।
लेकिन हकीकत कुछ और है। Helios Capital Asset Management India में म्यूचुअल फंड, पीएमएस और एआईएफ के प्रमुख, देवीप्रसाद नायर बताते हैं कि कई फ्लेक्सी-कैप फंड अभी भी अपने पोर्टफोलियो का 70% से अधिक हिस्सा केवल लार्ज-कैप शेयरों में रखते हैं, जिससे वे प्रभावी रूप से लार्ज-कैप फंड की तरह ही व्यवहार करने लगते हैं। यह निवेशकों को पूरी ‘फ्लेक्सिबिलिटी’ का लाभ नहीं लेने देता।
नायर ने विस्तार से बताया है कि कैसे सच्चे फ्लेक्सी-कैप फंड, SEBI के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, बाज़ार के विभिन्न चक्रों में ग्रोथ दे सकते हैं।
Flexi-Cap क्यों लाया गया? सेबी का दूरदर्शी कदम
देवीप्रसाद नायर के अनुसार, SEBI ने फ्लेक्सी-कैप कैटेगरी इसलिए शुरू की, क्योंकि पहले की मल्टी-कैप फंड कैटेगरी में यह देखा गया कि फंड्स का बड़ा हिस्सा लार्ज-कैप शेयरों में केंद्रित था। इससे विविधीकरण (Diversification) का पूरा फायदा नहीं मिल पा रहा था।
नायर ने कहा, “SEBI ने मल्टी-कैप फंडों को लार्ज, मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में कम से कम 25% हिस्सा रखना अनिवार्य कर दिया, और इसके बाद फ्लेक्सी-कैप कैटेगरी बनाई। यह कैटेगरी फंड मैनेजर्स को वास्तविक विवेक (Genuine Discretion) का इस्तेमाल करने की अनुमति देती है, जबकि इसमें इक्विटी में न्यूनतम 65% निवेश की आवश्यकता होती है।”
इस संरचना से फंड पोर्टफोलियो में पारदर्शिता बनी रहती है और निवेशकों के लिए विभिन्न फंडों की तुलना करना आसान हो जाता है।
‘सच्चा’ Flexi-Cap ही देता है Growth का मौका
नायर ज़ोर देकर कहते हैं कि असली फ्लेक्सी-कैप निवेश में मिड- और स्मॉल-कैप शेयरों में भी महत्वपूर्ण आवंटन शामिल होता है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “फ्लेक्सी-कैप फंड सिर्फ लार्ज-कैप से मिलने वाली स्थिरता (Stability) के बारे में नहीं हैं। वे बाज़ार के मूल्यांकन और चक्रों के आधार पर मिड- और स्मॉल-कैप में मौजूद ग्रोथ के अवसरों को भी भुना सकते हैं।”
कई फंड्स द्वारा लार्ज-कैप में 70% से अधिक ध्यान केंद्रित करना, फंड की अल्फा (Alpha) उत्पन्न करने की क्षमता को सीमित कर देता है। अल्फा का मतलब है बाज़ार बेंचमार्क से ज़्यादा रिटर्न कमाना। नायर चेतावनी देते हैं कि निवेशक अनजाने में अपने मौजूदा लार्ज-कैप होल्डिंग्स को डुप्लिकेट कर सकते हैं और मिड- व स्मॉल-कैप शेयरों से मिलने वाले संभावित लाभ से चूक सकते हैं।
डायनामिक री-बैलेंसिंग: सफलता की कुंजी
फ्लेक्सी-कैप फंड में री-बैलेंसिंग (पोर्टफोलियो समायोजन) आमतौर पर किसी निश्चित समय-सीमा के बजाय बाज़ार की गतिशीलता से प्रेरित होती है।
नायर ने Helios MF का उदाहरण दिया: “साल 2024 की शुरुआत में, जब मिड-कैप का मूल्यांकन उच्च था, Helios MF ने मिड-कैप एक्सपोजर कम किया और लार्ज-कैप होल्डिंग्स बढ़ा दीं।”
जैसे ही बाज़ार की स्थितियाँ बाद में बदलीं, फंड ने लार्ज-कैप आवंटन को कम कर दिया ताकि अन्य सेगमेंट में अधिक आकर्षक अवसरों का फायदा उठाया जा सके। नायर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि यह गतिशील री-बैलेंसिंग ही फ्लेक्सी-कैप फंडों के मूल उद्देश्य को दर्शाती है—स्थिरता को ग्रोथ की क्षमता के साथ संतुलित करना, और लचीला बने रहना।
नायर ने निष्कर्ष निकाला, “फ्लेक्सी-कैप फंडों की ताकत, अनुशासित और रिसर्च-आधारित बदलाव करते हुए बाज़ार की पूरी चौड़ाई का उपयोग करने में निहित है।”
SEBI के दिशानिर्देशों ने फंड श्रेणियों के बीच स्पष्टता लाई है, जिससे निवेशकों को सूचित विकल्प चुनने में मदद मिलती है। यदि आप फ्लेक्सी-कैप फंड में निवेश पर विचार कर रहे हैं, तो फंड की आवंटन रणनीति और री-बैलेंसिंग के दृष्टिकोण को समझना सबसे महत्वपूर्ण है ताकि बाज़ार के सभी चक्रों में ग्रोथ हासिल की जा सके।
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