म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर (MFDs), स्टॉक ब्रोकर, बीमा एजेंट को जीएसटी से कोई राहत नहीं

Debt funds saw over ₹1 lakh crore outflows in September: No need to panic, here's the full story!

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मुंबई Mumbai: सरकार ने हाल ही में जीवन और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) में राहत की घोषणा की है, लेकिन म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर (MFDs), स्टॉक ब्रोकर, बीमा एजेंट और अन्य वित्तीय मध्यस्थों को कोई राहत नहीं दी गई है। इन वर्गों को अपनी कमीशन आय पर पहले की तरह ही 18% जीएसटी चुकाना होगा। इस फैसले ने वित्तीय मध्यस्थ समुदाय में निराशा और असंतोष का माहौल बना दिया है।

जीएसटी छूट केवल कुछ बीमा उत्पादों तक सीमित

जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा उत्पादों पर जीएसटी दरों में कटौती की गई है। सरकार का मानना है कि इससे बीमा कवरेज लेने वाले ग्राहकों को सीधी राहत मिलेगी। मगर, वित्तीय उत्पादों को ग्राहकों तक पहुँचाने वाले वितरकों, एजेंटों और ब्रोकरों को राहत न देकर सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वित्तीय सेवाओं के मध्यस्थों पर टैक्स भार यथावत रहेगा।

MFDs को ही क्यों उठाना पड़ेगा 18% जीएसटी का बोझ?

म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स (MFDs) अपने काम के दौरान एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) द्वारा प्रदान की गई सेवाओं का उपयोग करते हैं। यही वजह है कि उनकी प्राप्त कमीशन आय पर जीएसटी लगाया जाता है।

  • MFDs की ओर से मिलने वाली कमीशन आय पर 18% जीएसटी लागू होता है।

  • यह दर बदस्तूर जारी रहेगी, जबकि अन्य वित्तीय उत्पादों पर सरकार कुछ राहत की घोषणाएं कर चुकी है।

  • इस फैसले से स्पष्ट है कि सरकार अब वित्तीय मध्यस्थता व्यवसाय में अलग-अलग दरें तय करने के पक्ष में नहीं है।

छूट की सीमा: 20 लाख और 10 लाख

हालांकि सरकार ने न्यूनतम आय सीमा पर कुछ छूट दी हुई है।

  • अधिकांश राज्यों में MFDs को वार्षिक 20 लाख रुपये तक की कमीशन आय पर जीएसटी से छूट है।

  • लेकिन, पूर्वोत्तर के चार राज्यों — त्रिपुरा, नागालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर — में यह सीमा केवल 10 लाख रुपये है।
    यह छूट इंडिविजुअल MFDs, सोल प्रॉप्राइटरशिप, पार्टनरशिप फर्म्स, LLPs, प्राइवेट लिमिटेड और पब्लिक लिमिटेड कंपनियों सभी पर लागू है, बशर्ते वे वितरण के क्षेत्र में कार्यरत हों।

कमीशन आय का समेकित आकलन अनिवार्य

जीएसटी मानकों के अनुसार, यह जरूरी है कि MFDs या ब्रोकर अपनी कुल कमीशन आय का सही-सही आकलन करें।

  • केवल म्यूचुअल फंड की आय नहीं, बल्कि अन्य वित्तीय उत्पादों जैसे स्टॉक ब्रोकिंग, इंश्योरेंस, बॉन्ड्स आदि की कमीशन भी वार्षिक आय की गणना में जोड़ी जाएगी।

  • इसका अर्थ यह है कि यदि किसी वितरक की कुल कमीशन आय छूट सीमा से अधिक है, तो उसे जीएसटी चुकाना अनिवार्य होगा।

एचएसएन कोड 997152 के अंतर्गत कवरेज

वर्तमान में MFDs और अन्य वित्तीय मध्यस्थ HSN कोड 997152 के तहत रखे गए हैं। यह कोड “ब्रोकरेज और संबंधित प्रतिभूति एवं कमोडिटी सेवाओं” को कवर करता है। इसके अंतर्गत शामिल हैं:

  • सिक्योरिटी लेनदेन के लिए ब्रोकरेज सेवाएं, खरीदार और विक्रेता को जोड़ना।

  • म्यूचुअल फंड यूनिट्स/शेयर आदि की बिक्री में एजेंट के रूप में काम करना।

  • सरकारी बॉन्ड की विक्रय, डिलीवरी और रिडेम्पशन सेवाएं।

  • ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की ब्रोकरेज सेवाएं।

  • कमोडिटी और कमोडिटी फ्यूचर की ब्रोकरेज सेवाएं।

  • वित्तीय डेरिवेटिव्स की ब्रोकरेज सेवाएं।

  • कम्प्यूटर आधारित क्लियरिंग और सेटलमेंट सेवाएं, जिनसे सिक्योरिटी संबंधी लेनदेन का डेबिट, क्रेडिट और स्वामित्व का हस्तांतरण संभव होता है।

वित्तीय मध्यस्थों की चिंता

हालांकि इस सेक्टर को लगातार बढ़ावा दिए जाने की कोशिशें की जा रही हैं, परंतु टैक्स भार बढ़ने से छोटे वितरकों पर दबाव पड़ता है।

  • छोटे MFDs और एजेंट्स का कहना है कि भारी टैक्स बोझ उनकी आय पर नकारात्मक असर डालता है।

  • बड़े वितरण नेटवर्क और कंपनियां तो इस टैक्स को वहन कर लेती हैं, लेकिन छोटे वितरक मुकाबले में पिछड़ जाते हैं।

  • इस बोझ के कारण नए लोगों का इस उद्योग में प्रवेश करना भी कठिन हो सकता है।

नीतिगत असंतुलन पर सवाल

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि वित्तीय उत्पादों के वितरण नेटवर्क को मजबूत किए बिना देश में वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। बीमा पॉलिसियों पर राहत और वितरकों पर टैक्स का बोझ बनाए रखने से एक नीतिगत असंतुलन पैदा होता है।

सरकार को यह समझने की आवश्यकता है कि

  • बीमा और निवेश उत्पाद ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए यही वितरक सबसे अहम भूमिका निभाते हैं।

  • यदि इन्हीं पर अतिरिक्त टैक्स भार रहेगा, तो वे उत्पाद बेचने या ग्राहकों को जागरूक करने से हिचक सकते हैं।

  • लंबे समय में इसका असर निवेशक शिक्षा और वित्तीय समावेशन पर पड़ सकता है।

सरकार भले ही सीधे ग्राहकों को राहत दे रही हो, लेकिन वित्तीय मध्यस्थों पर टैक्स बोझ जस का तस रखने से उद्योग में निराशा का माहौल है। म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, स्टॉक ब्रोकर और एजेंट लगातार यह मांग कर रहे हैं कि उनकी कमीशन आय पर लगाए गए 18% जीएसटी दर में कुछ कमी की जाए। फिलहाल, सरकार इस मांग को मानने को तैयार नहीं दिख रही है।

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By MFNews