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नई दिल्ली: भारत में चांदी की कीमतों ने नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। सोमवार को बाजार खुलते ही चांदी ₹1.23 लाख प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई, जो अब तक का सर्वाधिक स्तर है। यह उछाल न केवल घरेलू बाजार में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देखने को मिला है, जहां चांदी ने 14 साल बाद $40 प्रति औंस का स्तर पार कर लिया।
घरेलू बाजार में उछाल
मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) में सोमवार को कारोबार की शुरुआत चांदी के अब तक के उच्चतम स्तर से हुई। कीमतों को बढ़ावा देने में दो प्रमुख कारण रहे—कमजोर रुपया और मजबूत वैश्विक संकेत।
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी के कारण चांदी और अन्य कीमती धातुओं की कीमतों में घरेलू बाजार में अतिरिक्त उछाल देखने को मिला है।
वैश्विक स्तर पर 14 साल का रिकॉर्ड
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी ने सोमवार को $40 प्रति औंस का स्तर पार कर लिया। स्पॉट सिल्वर 1.6% बढ़कर $40.31 प्रति औंस पर पहुंचा। यह उछाल सितंबर 2011 के बाद पहली बार देखा गया है।
वैश्विक स्तर पर इस तेजी को कई कारक चला रहे हैं:
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औद्योगिक मांग में मजबूती (विशेषकर सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़ी उद्योगों में),
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स्थिर निवेश प्रवाह, और
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अमेरिकी फेडरल रिजर्व से ब्याज दरों में नरमी की उम्मीदें।
भविष्य की संभावनाएं
आर्थिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर मौजूदा रुझान जारी रहता है तो भारत में चांदी की कीमत 2028 तक ₹2 लाख प्रति किलो तक पहुंच सकती है।
कमोडिटी विशेषज्ञ मानते हैं कि चांदी का यह उछाल केवल अल्पकालिक नहीं है। इसका आधार उद्योगों में बढ़ती मांग और सुरक्षित निवेश साधनों की तलाश है।
विशेषज्ञों की राय
मेहता इक्विटीज के वीपी (कमोडिटीज) राहुल कलंत्री ने कहा:
“चांदी की कीमतें वैश्विक और घरेलू स्तर पर तेज हो रही हैं। इसका मुख्य कारण बढ़ते व्यापारिक तनाव और कमजोर रुपया है। कमजोर मुद्रा से घरेलू बाजार में चांदी और महंगी हो रही है, जिससे निवेशकों का रुझान और बढ़ गया है।”
उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में चांदी की तुरंत सपोर्ट ₹1.18–₹1.19 लाख प्रति किलो पर है, जबकि रेजिस्टेंस ₹1.20–₹1.21 लाख प्रति किलो पर बना हुआ है।
आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य का असर
चांदी का यह उछाल ऐसे समय आया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में गहरी अनिश्चितता बनी हुई है।
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अमेरिका और यूरोप में मंदी की आशंकाएं,
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चीन की धीमी रिकवरी,
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और भू-राजनीतिक तनाव ने निवेशकों को सुरक्षित विकल्प की तलाश में धकेल दिया है।
सोने के साथ-साथ चांदी भी हमेशा से सुरक्षित निवेश (Safe Haven) मानी जाती रही है। हालांकि सोना पहले से ही रिकॉर्ड स्तर पर है, इसलिए निवेशक अब चांदी की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं।
भारतीय उपभोक्ताओं पर असर
भारत में चांदी का उपयोग आभूषणों, सिक्कों, बर्तनों और धार्मिक आयोजनों में बड़े पैमाने पर होता है। कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी से खुदरा उपभोक्ताओं पर सीधा असर पड़ेगा। छोटे निवेशक और उपभोक्ता अब भारी मात्रा में खरीदारी करने के बजाय हल्के वजन के आभूषण और छोटे सिक्कों की ओर झुक सकते हैं।
आगे का रास्ता
अब निवेशकों की निगाहें अमेरिकी नॉन-फार्म पेरोल डेटा और फेडरल रिजर्व की सितंबर बैठक पर टिकी हैं। अगर फेड ब्याज दरों में कटौती या नरमी के संकेत देता है, तो चांदी और अन्य कीमती धातुओं की कीमतों में और तेजी देखने को मिल सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले समय में कीमतें उतार-चढ़ाव भरी रहेंगी। हालांकि दीर्घकालिक निवेशकों के लिए चांदी अभी भी आकर्षक विकल्प बनी हुई है।
भारत में ₹1.23 लाख प्रति किलो और अंतरराष्ट्रीय बाजार में $40 प्रति औंस का स्तर पार करना, चांदी के लिए ऐतिहासिक क्षण है। यह रैली केवल आर्थिक अनिश्चितता का परिणाम नहीं बल्कि उद्योगों में बढ़ती खपत और निवेशकों की बदलती प्राथमिकताओं का भी संकेत है। अगर मौजूदा रुझान जारी रहते हैं, तो आने वाले वर्षों में चांदी निवेशकों और उद्योग दोनों के लिए और अधिक अहम भूमिका निभा सकती है।
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