SEBI के नए नियम: फाउंडर-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स के लिए IPO की राह आसान

Ease of Doing Business - Rationalization and Standardization of penalties levied on Trading Members

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नई दिल्ली — भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने हाल ही में ऐसे बदलावों को मंजूरी दी है, जो भारतीय स्टार्टअप्स के लिए IPO (Initial Public Offering) की प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ-साथ उन कंपनियों को भी लचीलापन देंगे, जो ‘घरवापसी’ (Gharwapse) या ‘रिवर्स फ्लिप’ की प्रक्रिया अपना रही हैं। इन सुधारों से खास तौर पर उन फाउंडर्स को लाभ होगा, जो भारत में सूचीबद्ध (लिस्ट) होना चाहते हैं।


IPO बाजार में तेजी

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय IPO बाजार में जबरदस्त उछाल आया है।

  • 2024 में रिकॉर्ड 93 मेनबोर्ड IPO हुए।

  • 2025 की पहली दो तिमाहियों (Q1 और Q2) में 90+ DRHP फाइल किए गए।

  • साल के दूसरे हिस्से में कई हाई-प्रोफाइल IPO आने वाले हैं, जिनमें वे कंपनियां भी शामिल हैं जिन्होंने अपना विदेशी होल्डिंग स्ट्रक्चर बदलकर भारत में पंजीकरण कराया है (यानी ‘रिवर्स फ्लिप’)।


SEBI के 18 जून 2025 के फैसले

SEBI बोर्ड की बैठक में कई महत्वपूर्ण छूटों को मंजूरी दी गई। मुख्य बदलाव इस प्रकार हैं —

  1. फाउंडर्स को ESOP से राहत

    • अगर फाउंडर को ESOPs (Employee Stock Option Plans) तब मिले थे, जब उन्हें ‘प्रमोटर’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था, और ये ESOPs DRHP फाइल करने से 1 साल पहले दिए गए थे, तो IPO प्रक्रिया में आने के बाद भी ये ESOPs मान्य रहेंगे, भले ही अब उन्हें ‘प्रमोटर’ माना जाए।

  2. CCPS शेयरों पर होल्डिंग पीरियड से छूट

    • अगर किसी कोर्ट-अप्रूव्ड मर्जर स्कीम के तहत पूरी तरह से भुगतान किए गए Compulsorily Convertible Preference Shares (CCPS) को इक्विटी शेयरों में बदला जाता है, तो OFS (Offer for Sale) में बेचने के लिए न्यूनतम 1 साल की होल्डिंग आवश्यकता नहीं होगी — बशर्ते कि मूल निवेश (अमलगमेटिंग कंपनी में) एक साल से अधिक समय के लिए रखा गया हो।

    • यह बदलाव खासकर फाइनेंशियल इन्वेस्टर्स के लिए फायदेमंद है, क्योंकि स्टार्टअप्स में उनकी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा CCPS के रूप में होता है।

    • ऐसे CCPS को अब न्यूनतम 20% प्रमोटर योगदान के हिस्से के रूप में भी जोड़ा जा सकता है।


मौजूदा चुनौतियां

हालांकि, अभी भी कुछ बड़े मुद्दे बाकी हैं, जिन पर समाधान ज़रूरी है —

  1. प्रमोटर वर्गीकरण की समस्या

    • नियमों में ‘प्रमोटर’ की परिभाषा का कोई सटीक पैमाना (Brightline Test) नहीं है।

    • पहले यह माना जाता था कि अगर किसी व्यक्ति (और उसके करीबी रिश्तेदारों) के पास लिस्टिंग के बाद 25% या उससे अधिक हिस्सेदारी है, तो वह ‘प्रमोटर’ है।

    • हाल के समय में, स्टॉक एक्सचेंजों ने यह सीमा घटाकर 10% कर दी है (संयुक्त रूप से, भले ही फाउंडर्स आपस में असंबंधित हों)।

    इससे कई स्टार्टअप फाउंडर्स ‘प्रमोटर’ बन जाते हैं, भले ही उनकी व्यक्तिगत हिस्सेदारी बहुत कम हो और कंपनी पर उनका कोई वास्तविक नियंत्रण न हो।

  2. 20% प्रमोटर लॉक-इन की समस्या

    • जब फाउंडर्स के पास मिलाकर भी 20% से कम हिस्सेदारी हो, तो उन्हें अन्य निवेशकों के साथ बातचीत करके यह हिस्सा जुटाना पड़ता है, जिससे IPO में देरी हो सकती है।

  3. ESOP देने पर पाबंदियां

    • प्रमोटर वर्गीकरण के कारण फाउंडर्स को नए ESOPs नहीं मिल पाते और पुराने ESOPs को भी एक्सरसाइज़ या कैंसिल करना पड़ता है।

    • हालांकि SEBI ने इसमें आंशिक राहत दी है, लेकिन पूरी समस्या अभी हल नहीं हुई है।


अंतरराष्ट्रीय तुलना

जर्मनी, सिंगापुर और अमेरिका जैसे देशों में फाउंडर्स को ESOP देने की अनुमति है, बशर्ते —

  • स्वतंत्र शेयरधारकों की मंजूरी हो,

  • या यह उनके रोल, स्वामित्व या प्रदर्शन पर आधारित हो।

भारत में भी पारंपरिक लिस्टेड कंपनियों के CEO और वरिष्ठ अधिकारियों को उनके वेतन पैकेज में ESOP दिए जाते हैं।


फाउंडर्स को इक्विटी से जोड़ना क्यों ज़रूरी?

  • फाउंडर की सफलता को कंपनी के प्रदर्शन से जोड़ना (ESOPs या इक्विटी इंसेंटिव के माध्यम से)

    • कंपनी के लिए नकदी बचाता है,

    • नेतृत्व टीम को लंबे समय तक जुड़ा और प्रेरित रखता है।


भविष्य के लिए सुझाव

विशेषज्ञों का मानना है कि SEBI का यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन कुछ और सुधार ज़रूरी हैं —

  • प्रमोटर वर्गीकरण के नियमों में स्पष्टता लाना,

  • असंबंधित फाउंडर्स की हिस्सेदारी को जोड़ने की पॉलिसी पर पुनर्विचार,

  • फाउंडर्स के लिए ESOP नियमों को प्रगतिशील बनाना,

  • ‘रिवर्स फ्लिप’ मामलों में विदेशी पेरेंट कंपनी द्वारा दिए गए पुराने ESOPs को भी इस छूट के दायरे में लाना।


निष्कर्ष

SEBI के हालिया सुधार भारतीय स्टार्टअप्स के लिए IPO की राह में एक बड़ा सकारात्मक कदम हैं। ये न केवल फाउंडर्स को लचीलापन देंगे, बल्कि निवेशकों और बाजार के लिए भी स्थिरता और पारदर्शिता लाएंगे। अगर बाकी बचे मुद्दों पर भी स्पष्टता दी गई, तो भारत उच्च-विकास वाली कंपनियों के लिए न सिर्फ संचालन, बल्कि लिस्टिंग के लिए भी एक प्रमुख गंतव्य बन सकता है।


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By MFNews