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मुंबई: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के समापन के बाद आज गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रेस वार्ता में मौद्रिक नीति के निर्णयों की घोषणा की। इस बैठक में केंद्रीय बैंक ने प्रमुख नीतिगत दर यानी रेपो रेट को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है, जो कि लगातार आठवीं बार यथावत रही है।
इसके साथ ही रिवर्स रेपो रेट 3.35% और मर्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) तथा बैंक दर 6.75% पर बरकरार रखी गई हैं। इस नीति रुख को “विवेकपूर्ण और संतुलित” बताते हुए गवर्नर ने स्पष्ट किया कि आरबीआई अभी भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के अपने लक्ष्य पर केंद्रित है, जबकि आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने का भी ध्यान रखा जा रहा है।
मुद्रास्फीति पर आरबीआई का रुख
आरबीआई ने महंगाई के मोर्चे पर सतर्क रुख अपनाया है। गवर्नर दास ने कहा कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मौसमी उछाल और जलवायु से जुड़ी अनिश्चितताओं के चलते उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति पर दबाव बना रह सकता है। जुलाई 2025 के आंकड़ों के अनुसार, खुदरा महंगाई दर 5.4% के आसपास बनी हुई है, जो आरबीआई के सहनीय स्तर (4% लक्ष्य, ±2%) से ऊपर है।
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष (2025-26) के लिए मुद्रास्फीति का औसत अनुमान 4.8% पर बनाए रखा है, लेकिन इसके साथ यह भी जोड़ा कि अस्थिर खाद्य कीमतें इसके अनुमानों को प्रभावित कर सकती हैं।
आर्थिक विकास की स्थिति और अनुमान
देश की आर्थिक वृद्धि दर को लेकर रिज़र्व बैंक ने आशावादी दृष्टिकोण बनाए रखा है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान 7.0% पर बरकरार रखा गया है। आरबीआई का मानना है कि शहरी खपत, निजी निवेश और सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि से आर्थिक गतिविधियों में मजबूती बनी रहेगी।
औद्योगिक उत्पादन, सेवा क्षेत्र में मांग और निर्यात में सुधार के संकेत भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलापन को दर्शाते हैं। हालांकि, वैश्विक अनिश्चितताओं, जियोपॉलिटिकल जोखिम और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को संभावित खतरे के रूप में रेखांकित किया गया।
ब्याज दरों पर असर और बैंकिंग क्षेत्र की प्रतिक्रियाएं
रेपो रेट में कोई बदलाव न होने के चलते यह अनुमान लगाया जा रहा है कि लोन और ईएमआई की दरों में फिलहाल कोई राहत नहीं मिलेगी। हालांकि, बैंकों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की नजर अब अगली मॉनेटरी पॉलिसी बैठक और मुद्रास्फीति के ट्रेंड पर होगी।
देश के प्रमुख बैंकों ने भी आरबीआई के इस फैसले को “अनुकूल और आवश्यक” बताया है। बैंकिंग क्षेत्र के विश्लेषकों का मानना है कि मौद्रिक स्थिरता बनाए रखते हुए आर्थिक सुधार को समर्थन देना इस नीति का मुख्य उद्देश्य है।
आरबीआई का नीति रुख: ‘विवेकपूर्ण और संतुलित’
मौद्रिक नीति समिति ने नीति रुख को ‘विवेकपूर्ण’ (withdrawal of accommodation) बनाए रखा है, जो यह दर्शाता है कि भविष्य में यदि महंगाई बढ़ती है तो आरबीआई कठोर कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा।
गवर्नर दास ने यह भी स्पष्ट किया कि “मुद्रास्फीति को लक्ष्य के भीतर लाना हमारी प्राथमिकता बनी हुई है। परंतु, हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि नीति का कोई भी कठोर निर्णय विकास को बाधित न करे।”
भविष्य की संभावनाएं
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगली तिमाही में यदि मुद्रास्फीति में नरमी आती है, तो आरबीआई ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकता है, जिससे कर्ज लेना सस्ता हो सकता है और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि, वैश्विक ब्याज दरों की स्थिति, अमेरिका और यूरोप की नीतियों, तथा मानसून की स्थिति जैसे कारकों पर भी अगली नीतियों की दिशा निर्भर करेगी।
निष्कर्ष
इस मॉनेटरी पॉलिसी समीक्षा में आरबीआई ने कोई चौंकाने वाला फैसला नहीं लिया, बल्कि मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की अपनी सतत नीति को दोहराया है। स्थिर ब्याज दरों के जरिए अर्थव्यवस्था को स्थायित्व देने की कोशिश की गई है, जबकि भावी निर्णय डेटा और परिस्थितियों पर आधारित होंगे।
