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नई दिल्ली: भारत में मोबाइल फोन निर्माण क्षेत्र ने पिछले एक दशक में जिस तेज़ी से विकास किया है, वह किसी औद्योगिक क्रांति से कम नहीं है। भारत सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना और नेशनल पॉलिसी ऑन इलेक्ट्रॉनिक्स (NPE) 2019 के तहत उठाए गए व्यापक कदमों ने भारत को मोबाइल निर्माण में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बना दिया है।
आज भारत, मोबाइल फोन निर्माण में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है। 2014-15 में जहाँ भारत मोबाइल का आयातक था, वहीं 2024-25 तक भारत न केवल अपनी घरेलू ज़रूरतें पूरी कर रहा है, बल्कि विश्व स्तर पर मोबाइल का प्रमुख निर्यातक बन चुका है।

📊 एक दशक का आंकड़ों में विश्लेषण
नीचे दिए गए आंकड़े दर्शाते हैं कि कैसे मोबाइल निर्माण क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया:
| श्रेणी | 2014-15 | 2024-25 | परिवर्तन |
|---|---|---|---|
| इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का कुल उत्पादन | ₹1.9 लाख करोड़ | ₹11.3 लाख करोड़ | 6 गुना वृद्धि |
| इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का निर्यात | ₹38,000 करोड़ | ₹3.27 लाख करोड़ | 8 गुना वृद्धि |
| मोबाइल निर्माण इकाइयाँ | 2 | 300 | 150 गुना वृद्धि |
| मोबाइल फोन निर्माण | ₹18,000 करोड़ | ₹5.45 लाख करोड़ | 28 गुना वृद्धि |
| मोबाइल फोन निर्यात | ₹1,500 करोड़ | ₹2 लाख करोड़ | 127 गुना वृद्धि |
| मोबाइल फोन आयात | कुल मांग का 75% | कुल मांग का मात्र 0.02% | लगभग समाप्त |
यह परिवर्तन न केवल संख्या में है, बल्कि भारत के औद्योगिक दृष्टिकोण में भी एक गुणात्मक सुधार को दर्शाता है।
🛠️ PLI योजना: परिवर्तन का इंजन
सरकार द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण को बढ़ावा देने के लिए विशेष रूप से शुरू की गई PLI योजना ने मोबाइल क्षेत्र में नई जान फूंकी है। इस योजना के तहत:
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बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण (LSEM) PLI योजना ने अब तक ₹12,390 करोड़ का निवेश आकर्षित किया।
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इससे कुल ₹8.44 लाख करोड़ का उत्पादन और ₹4.65 लाख करोड़ का निर्यात हुआ।
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इस योजना ने अब तक 1.30 लाख प्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न किए हैं।
वहीं, आईटी हार्डवेयर के लिए PLI 2.0 योजना के अंतर्गत:
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₹717.13 करोड़ का निवेश हुआ।
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₹12,195 करोड़ का उत्पादन और 5,056 प्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न हुए।
🌍 एफडीआई और मेक इन इंडिया का असर
पिछले 5 वर्षों में (FY 2020-21 से 2025 तक):
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इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण क्षेत्र में कुल FDI USD 4,071 मिलियन हुआ।
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इसमें से USD 2,802 मिलियन का एफडीआई केवल MeitY के लाभार्थियों द्वारा किया गया है।
मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अनेक नीतिगत सुधार किए:
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100% एफडीआई की अनुमति (विधिसम्मत नियंत्रणों के अधीन)
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बेसिक कस्टम ड्यूटी में छूट और टैरिफ स्ट्रक्चर का सरलीकरण
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Make in India प्रोक्योरमेंट नीति 2017 के तहत घरेलू उत्पादों को प्राथमिकता
🧱 अन्य सहायक योजनाएँ
PLI योजना के अतिरिक्त, सरकार ने निम्न योजनाएँ शुरू कीं:
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SPECS योजना: इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए प्रोत्साहन
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EMC और EMC 2.0 योजना: इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर विकास हेतु
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उद्योग-नुकूल टैक्स सुधार और उत्पादन लागत में कमी हेतु कदम
इन सभी ने मिलकर भारत में एक मजबूत इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम तैयार किया है।
🔍 वैल्यू एडिशन और आत्मनिर्भरता
उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, अब इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत की वैल्यू एडिशन दर 18-20% तक पहुँच गई है। इसका मतलब है कि अब भारत में न केवल असेंबली, बल्कि कंपोनेंट निर्माण और उच्च स्तर की तकनीकी गतिविधियाँ भी हो रही हैं।
2014-15 में जहाँ मोबाइल फोन की घरेलू मांग का 75% आयात से पूरा होता था, वहीं अब यह घटकर केवल 0.02% रह गया है — यानी भारत लगभग पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो गया है।
📢 नीति निर्माताओं और उद्योग की प्रतिक्रिया
इस क्रांतिकारी बदलाव पर टिप्पणी करते हुए, उद्योग विशेषज्ञों ने इसे “विश्व स्तर की नीति संरचना और मजबूत क्रियान्वयन” का परिणाम बताया है। उनका मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत ग्लोबल सप्लाई चेन में एक प्रमुख खिलाड़ी बन जाएगा।
सरकार की “वोकल फॉर लोकल” से लेकर “ग्लोबल फॉर लोकल” तक की यात्रा, अब स्पष्ट रूप से मूर्त रूप ले रही है।
✅ निष्कर्ष: भारत की तकनीकी छलांग
भारत ने पिछले 10 वर्षों में जिस गति और कौशल से मोबाइल निर्माण क्षेत्र में वृद्धि की है, वह वैश्विक मंच पर एक प्रेरणादायक कहानी बन चुकी है। सरकार की योजनाओं, निवेशकों के विश्वास, और उद्योग की कार्यक्षमता ने भारत को मैन्युफैक्चरिंग महाशक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है।
आने वाले वर्षों में, यदि यह रफ्तार बनी रही, तो भारत न केवल मोबाइल निर्माण बल्कि सेमीकंडक्टर्स, डिस्प्ले पैनल, और अन्य हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक्स में भी विश्व अग्रणी बन सकता है।
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