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चंडीगढ़: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा हाल ही में जारी प्रस्ताव, जिसमें एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को एक ही श्रेणी में दूसरा म्यूचुअल फंड स्कीम शुरू करने की अनुमति दी गई है, को सलाहकारों और वितरकों से मिश्रित प्रतिक्रिया मिली है। कई विशेषज्ञों ने निवेशकों में भ्रम और SIP (सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) की निरंतरता पर प्रभाव को लेकर चिंता जताई है।
प्रस्ताव के मुख्य बिंदु
सेबी ने 18 जुलाई को एक ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया है, जिसके अनुसार किसी भी AMC को उसी कैटेगरी—जैसे लार्ज-कैप या मिड-कैप—में दूसरा फंड लॉन्च करने की अनुमति होगी, बशर्ते पहला फंड कम से कम पांच साल पुराना हो और उसके पास 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) हो। इस प्रस्ताव पर 8 अगस्त तक सार्वजनिक सुझाव आमंत्रित किए गए हैं।
प्रस्ताव में स्कीम स्तर पर कुल व्यय अनुपात (TER) की सीमा तय की गई है, जिसे निवेशकों के लिए लाभकारी माना जा रहा है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम सेबी द्वारा 2017 में किए गए फंड कैटेगरी के सरलीकरण और व्यवस्थित वर्गीकरण के प्रयासों को कमजोर कर सकता है।
उद्योग की प्रतिक्रिया
प्लानरुपी इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के अमोल जोशी ने कहा,
“एक ही कैटेगरी में कई स्कीमों की अनुमति देना, पहले किए गए वर्गीकरण और सरलीकरण के प्रयासों के खिलाफ कदम है। पिछले 7-8 सालों में इंडस्ट्री ने इस संरचना के साथ काफी मेहनत की है।”
सक्रिपबॉक्स के सचिन जैन ने भी पारदर्शिता पर जोर देते हुए कहा,
“यदि एक ही AMC की दो लार्ज-कैप फंड स्कीमें हों और दोनों का पोर्टफोलियो काफी हद तक ओवरलैप हो, तो यह निवेशकों के लिए उपयोगी नहीं होगा। इससे प्रदर्शन में अंतर तो दिखेगा, पर स्पष्ट अंतर नहीं होगा।”
कुछ वितरकों का मानना है कि इससे एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स या डायरेक्ट प्लान के निवेशकों के लिए जटिलताएं बढ़ सकती हैं। एक वितरक ने कहा,
“यह केवल फंड के ओवरलैप की बात नहीं है, बल्कि संदेश की स्पष्टता की भी बात है। यदि SIPs या STPs बिना स्पष्ट जानकारी के नए फंड में रीडायरेक्ट होते हैं, तो निवेशकों में भ्रम और असंतोष बढ़ सकता है।”
जोशी ने आगे चेतावनी दी कि नए खुदरा निवेशकों के लिए यह पारदर्शिता की कमी भरोसे की गंभीर समस्या पैदा कर सकती है, खासतौर पर उन ऐप्स पर जहां फंड बदलाव की जानकारी समय पर नहीं दी जाती।
लचीलापन और निवेशक पसंद
फिर भी, कुछ सलाहकारों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया। जर्मिनेट इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संतोष जोसेफ ने कहा,
“कई निवेशक बड़े फंड की स्थिरता पसंद करते हैं, जबकि कुछ छोटे फंड की फुर्ती को तरजीह देते हैं। यह प्रस्ताव AMCs को दोनों तरह की प्राथमिकताओं को पूरा करने की गुंजाइश देता है।”
SIP निरंतरता पर खतरा
सबसे बड़ी चिंता SIP की निरंतरता को लेकर है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मूल स्कीम नए निवेश स्वीकार करना बंद कर दे, तो निवेशकों के लंबे समय से चल रहे SIPs बाधित हो सकते हैं।
जोशी का कहना है,
“कई अंतरराष्ट्रीय फंड नए निवेश रोक देते हैं, लेकिन पुराने SIPs को जारी रहने देते हैं। मुझे उम्मीद है कि यहां भी ऐसा ही ढांचा बनेगा। लेकिन अगर SIP अचानक बंद कर दी जाती है, तो निवेशक की पूरी योजना प्रभावित हो सकती है।”
जोसेफ ने कहा कि अभी पूरी व्यवस्था स्पष्ट नहीं है, लेकिन तर्कसंगत रूप से SIPs को जारी रहना चाहिए, जब तक निवेशकों को फिर से पंजीकरण करने के लिए नहीं कहा जाता।
सेबी की जिम्मेदारी
विभिन्न रायों के बावजूद, सभी का मत है कि सेबी को स्पष्ट और सरल संचार सुनिश्चित करना होगा, ताकि निवेशकों में कोई भ्रम न रहे। इसके साथ ही निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए एक व्यवस्थित दिशा-निर्देश बनाना आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
इस प्रस्ताव ने म्यूचुअल फंड उद्योग में नई चर्चा को जन्म दिया है। एक तरफ यह AMCs को लचीलापन प्रदान करता है, तो दूसरी ओर निवेशकों की समझ और भरोसे पर प्रभाव डाल सकता है। अब देखना होगा कि 8 अगस्त तक मिलने वाली प्रतिक्रियाओं के बाद सेबी इस प्रस्ताव में क्या बदलाव करती है और अंतिम ढांचा कैसा बनता है।
