त्विशा की पहली किताब “एक्टा नॉन वर्बा” ने जगाई उम्मीदें, आय जाएगी वंचित युवाओं के खेल विकास में काम
📍 गुरुग्राम, 11 जुलाई 2025
महज 17 वर्ष की उम्र में, त्विशा ने साबित कर दिया है कि बदलाव लाने के लिए न तो उम्र मायने रखती है, न ही बड़े संसाधनों की जरूरत होती है, बल्कि जरूरी है तो केवल जज़्बा, करुणा और उद्देश्य की भावना।
आज गुरुग्राम में आयोजित एक सादे लेकिन सार्थक कार्यक्रम में त्विशा ने अपनी पहली किताब “एक्टा नॉन वर्बा” (Acta Non Verba) — जिसका मतलब है “कर्म, शब्द नहीं” — लॉन्च की। इस किताब के जरिए उन्होंने न केवल अपनी लेखनी का परिचय दिया बल्कि एक सामाजिक उद्देश्य को भी नई दिशा दी।
📖 किताब के माध्यम से सेवा का संदेश
त्विशा ने घोषणा की कि किताब की पूरी आय उनके द्वारा स्थापित त्रिति चैरिटेबल ट्रस्ट को जाएगी — एक एनजीओ जो वंचित बच्चों को खेलों के क्षेत्र में अवसर, प्रशिक्षण, संसाधन और मानसिक सहयोग प्रदान करता है। किताब की मूल भावना सेवा और सक्रिय योगदान है।
त्विशा के अनुसार, “यह किताब मेरे बारे में नहीं है। यह उस विचार के बारे में है कि हर युवा को एक अवसर मिलना चाहिए, और मैं सिर्फ इसे संभव बनाने में एक माध्यम बनना चाहती हूँ।”
👧🏻 युवाओं की शक्ति का उदाहरण
“एक्टा नॉन वर्बा” न केवल एक आत्मकथा है, बल्कि यह एक युवा के अंदर उठते विचारों, आत्म-अन्वेषण, अनुशासन, और अंततः सेवा के प्रति जागरूकता का दस्तावेज है। यह किताब उस पीढ़ी की आवाज है जो सिर्फ शिकायत नहीं करती, बल्कि बदलाव की कमान अपने हाथ में लेने को तैयार है।
🏸 खेलों के माध्यम से सशक्तिकरण
त्विशा न सिर्फ एक लेखक हैं, बल्कि एक प्रतिभाशाली बैडमिंटन खिलाड़ी और सोशल आंत्रप्रेन्योर भी हैं। उन्हें खेलों की शक्ति का अनुभव है, और वे मानती हैं कि खेलों में वह ताकत है जो किसी भी बच्चे को आत्म-विश्वास, अनुशासन और मानसिक मजबूती दे सकती है।
उनका मानना है कि, “खेलों ने मुझे एक उद्देश्य दिया है, और अब मैं चाहती हूं कि त्रिति के माध्यम से किसी और को भी यह अनुभव मिले।”
त्रिति की नींव त्विशा और उनकी छोटी बहन कायरा ने अपने माता-पिता के सहयोग से रखी थी। यह पहल, उन बच्चों के लिए है जो खेल में करियर बनाने का सपना देखते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी से पीछे रह जाते हैं।
❤️ करुणा और नेतृत्व की नई परिभाषा
त्विशा का मानना है कि दुनिया को उदासीनता से ज्यादा सहानुभूति की ज़रूरत है — और वह भी सिर्फ़ बातों में नहीं, कर्मों में। वह दिखाती हैं कि किशोरावस्था कोई सीमा नहीं, बल्कि एक ऐसा दौर है जहां से लीडरशिप की शुरुआत हो सकती है।
उनकी यात्रा यह संदेश देती है कि
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रूढ़िवादिता को तोड़ा जा सकता है,
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लड़कियां सिर्फ़ फॉलो करने वाली नहीं, नेतृत्व देने वाली हो सकती हैं,
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और यह कि असली बदलाव जीवनभर का इंतज़ार नहीं करता — वह आज शुरू होता है।
🌟 त्विशा: एक प्रेरणादायी परिचय
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उम्र: 17 वर्ष
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भूमिका: लेखिका, एथलीट, आंत्रप्रेन्योर और समाजसेवी
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संस्थापक: त्रिति चैरिटेबल ट्रस्ट
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उद्देश्य: खेलों के जरिए वंचित युवाओं को अवसर देना
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मूल्य: करुणा, समानता, नेतृत्व, और कर्मशीलता
त्विशा उस नई पीढ़ी की प्रतिनिधि हैं जो दिल से सोचती है और हाथ से काम करती है। उनके प्रयास न सिर्फ बच्चों के जीवन को बदल रहे हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव की लहर भी ला रहे हैं।
📚 “एक्टा नॉन वर्बा” केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक आंदोलन है — जो हमें याद दिलाता है कि बदलाव की शुरुआत हर किसी के भीतर से होती है।
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