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COVID के बाद क्रेडिट-आधारित उपभोग से वित्तीय असुरक्षा बढ़ी, विश्लेषकों की चेतावनी
चंडीगढ़: भारत में घरेलू वित्तीय परिदृश्य हाल के वर्षों में काफी बदल चुका है। NSE मार्केट पल्स रिपोर्ट (जून 2025) के अनुसार, जहां एक ओर घरेलू ऋण और क्रेडिट आधारित उपभोग में तेजी देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत में चिंताजनक गिरावट आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, FY12 से FY20 तक भारत की शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत GDP का 7% से 8% के बीच स्थिर रही। लेकिन FY24 में यह गिरकर मात्र 5.2% रह गई, जो कि COVID से पहले के स्तर से भी नीचे है। यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब भारतीय परिवार उपभोग को पूरा करने के लिए उधार पर अधिक निर्भर हो रहे हैं, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
बचत की बढ़ोतरी से ऋण के बोझ तक का सफर
FY21 में, महामारी के दौरान, बचत में अस्थायी उछाल देखा गया था — जो कि GDP का 11.7% तक पहुंच गई थी। यह उछाल मुख्य रूप से उपभोग और उधारी के अवसरों में कमी और आय की अनिश्चितता के कारण था।
लेकिन जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था फिर से खुली और उपभोग में उछाल आया, घरेलू वित्तीय व्यवहार में तीव्र परिवर्तन देखने को मिला।
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घरेलू वित्तीय देनदारियाँ FY21 में GDP का 3.7% से बढ़कर FY24 में 6.2% हो गईं — यानी मात्र तीन वर्षों में यह ₹7.4 लाख करोड़ से बढ़कर ₹18.8 लाख करोड़ तक पहुंच गईं।
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इस बढ़ोतरी के साथ-साथ, शुद्ध वित्तीय बचत FY21 के उच्चतम स्तर ₹23.3 लाख करोड़ से घटकर FY24 में ₹15.5 लाख करोड़ रह गई।
यह बदलाव महामारी के बाद आर्थिक पुनरुद्धार में घरेलू वित्तीय स्थिति पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।
क्रेडिट-आधारित उपभोग में तेज़ी
शुद्ध बचत में गिरावट अपने आप में चिंताजनक है, लेकिन घरेलू क्रेडिट में निरंतर वृद्धि स्थिति को और जटिल बनाती है। FY13 से FY20 तक घरेलू ऋण GDP का 32–35% के बीच बना रहा, जबकि FY24 में यह बढ़कर 42.1% हो गया।
यह क्रेडिट वृद्धि निजी उपभोग में तेज़ उछाल से मेल खाती है, जो कि FY23 से FY25 के बीच 6.7% की औसत दर से बढ़ा। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस खर्च में भारी हिस्सा उधार लिए गए धन — जैसे क्रेडिट कार्ड, व्यक्तिगत ऋण और होम लोन — से संचालित है।
एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री के अनुसार, “क्रेडिट-आधारित उपभोग अल्पकालिक आर्थिक गति प्रदान कर सकता है, लेकिन यदि आय वृद्धि समान गति से नहीं बढ़ी, तो यह अस्थिरता का कारण बन सकता है। जब देनदारियाँ परिसंपत्तियों से तेज़ी से बढ़ती हैं, तो परिवार आर्थिक झटकों और ब्याज दरों में वृद्धि के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।”
बचत की प्रवृत्ति पर दबाव
रिपोर्ट का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि बचत और उधारी के प्रति परिवारों का दृष्टिकोण बदल रहा है:
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शुद्ध वित्तीय बचत में गिरावट केवल महामारी से पहले की स्थिति में लौटना नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक औसत से नीचे गिरने की एक निरंतर प्रवृत्ति है।
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बढ़ती महंगाई, ऊंची ब्याज दरें, शहरी जीवनशैली और आकांक्षात्मक खर्च परिवारों को बचत कम करने या ऋण पर निर्भर होने को मजबूर कर रहे हैं।
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कुछ वित्तीय योजनाकार यह भी बताते हैं कि अब अधिक परिवार शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड जैसे जोखिमपूर्ण निवेश विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे पारंपरिक बचत साधनों से दूरी बन रही है।
नीति और बाजार पर प्रभाव
यह बदलता हुआ वित्तीय परिदृश्य कई स्तरों पर प्रभाव डालता है:
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नीतिनिर्माताओं के लिए: शुद्ध बचत में गिरावट से घरेलू निवेश संसाधनों में कमी आ सकती है। सरकार को औपचारिक बचत साधनों को बढ़ावा देना होगा।
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वित्तीय संस्थानों के लिए: बैंकों और NBFCs को खुदरा ऋण मांग में वृद्धि तो मिलेगी, लेकिन ऋण अदायगी में जोखिम भी बढ़ सकता है।
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निवेशकों और शेयर बाजार के लिए: अल्पकालिक रूप में यह उपभोग वृद्धि उपभोक्ता-आधारित क्षेत्रों (जैसे ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट, इलेक्ट्रॉनिक्स) को बढ़ावा दे सकती है, लेकिन दीर्घकालिक जोखिम बने रहेंगे।
आगे की राह
विशेषज्ञों का सुझाव है कि परिवारों को चाहिए कि वे अपनी वित्तीय स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करें, अनावश्यक ऋण से बचें और आपातकालीन निधि तैयार करें। साथ ही, सरकार और वित्तीय संस्थानों को वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को मज़बूत करना चाहिए ताकि लोग संतुलित वित्तीय निर्णय ले सकें।
जैसे-जैसे भारत विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है, उपभोग, बचत और ऋण के बीच संतुलन बनाना टिकाऊ समृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक होगा।
🔍 संक्षेप में मुख्य बिंदु:
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शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत (FY24): GDP का 5.2% (FY21 में 11.7% थी)
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घरेलू वित्तीय देनदारियाँ (FY24): GDP का 6.2% (FY21 में 3.7% थी)
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घरेलू ऋण का कुल मूल्य (FY24): ₹18.8 लाख करोड़ (FY21 में ₹7.4 लाख करोड़)
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GDP के अनुपात में घरेलू ऋण: 42.1% (पूर्व-COVID औसत ~34%)
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निजी उपभोग वृद्धि दर: FY23–FY25 के दौरान 6.7% CAGR
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